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Editorial: प्रशासक सलाहकार परिषद की बैठक में बने ठोस कार्ययोजना

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A concrete action plan was made in the meeting of the Administrator Advisory Council: चंडीगढ़ में प्रशासक सलाहकार परिषद की इस वर्ष की पहली बैठक मंगलवार को होने जा रही है। इस परिषद पर शहर के विकास की रूपरेखा तैयार करते का दारोमदार है। बीते वर्षों में परिषद की बैठकें अपने तय समय पर नहीं हो सकी हैं, हालांकि प्रशासक गुलाब चंद कटारिया के कार्यकाल में इसकी संभावना बनी है कि परिषद की निर्धारित समय पर बैठक हो और उसमें शहर के विकास के मुद्दे उठाए जाएं। गौरतलब है कि बीते वर्ष सितंबर में परिषद की बैठक हुई थी, जिसमें विभिन्न मुद्दों को सामने लाया गया था। उसके बाद अब फरवरी माह में इस बैठक को आयोजित किया जा रहा है।

सलाहकार परिषद में 54 सदस्य हैं, इस बार नवनिवार्चित मेयर हरप्रीत कौर बबला भी इस बैठक में शामिल होंगी। दरअसल, बैठक के आयोजन और इसमें उठाए जाने वाले मुद्दों को लेकर यह चिंतन इसलिए है, क्योंकि इस तरह की बैठकें महज रवायत बन जा रही हैं और इनमें उठाए मुद्दों पर ठोस प्रगति होती नजर नहीं आती। ऐसे में प्रश्न यह उठने लगता है कि आखिर किस प्रयोजन के लिए इन बैठकों को आयोजित किया जाता है। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि ऐसी बैठकों में पारित प्रस्ताव ही अंतिम समझे जाएं और उन पर तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी जाए लेकिन हो यह रहा है कि नौकरशाही अपने हिसाब से निर्णय लेती है और कार्य निर्धारण तय करती है।

सितंबर माह में एक साल के बाद प्रशासक  सलाहकार परिषद की बैठक हुई थी और इसमें पुन: मांग की गई थी कि परिषद की कमेटियों की हर दो माह में बैठक करवाई जानी चाहिए। हालांकि अभी निर्धारित बैठक को पांच माह बाद आयोजित किया जा रहा है। उस समय इस मांग पर अधिकारियों की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया था। वास्तव में यह आवश्यक है कि प्रशासक सलाहकार परिषद की नियत अंतराल पर बैठक हो और उसकी कमेटियों की बैठकें भी उचित समय पर कराई जाएं। बीती बैठक में सांसद मनीष तिवारी ने कई मुद्दे उठाए थे, हालांकि पहले से जिन मांगों को रखा गया है, उनके पूरे न होने की शिकायत भी की थी। यह अजीब स्थिति है कि सांसद प्रशासक के समक्ष शहर में कार्यों के समय पर पूरा न होने की शिकायत कर रहे हैं। अगर एक सांसद की यह स्थिति है तो फिर आम नागरिक कहां और किसके समक्ष जाकर रोता रहे, उसकी सुनवाई कौन करेगा। वैसे सांसद का चुनाव इसलिए ही होता है कि वे जनता के प्रतिनिधि के रूप में काम करेंगे, लेकिन अगर उनकी ही सुनवाई न हो तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

शहर में मेट्रो एक बड़ा विषय है और हर चुनाव में इसका शोर सुनाई देता है, वहीं परिषद की बैठकों में भी इस पर घनघोर चर्चा होती है, लेकिन बरसों से मेट्रो सिर्फ फाइलों में ही चलती नजर आ रही है। तब की बैठक में सांसद मनीष तिवारी ने जहां मेट्रो के संचालन में हो रही देरी पर सवाल उठाया वहीं पूर्व सांसद किरण खेर का कहना था कि वे शहर के अंदर मेट्रो के संचालन के खिलाफ हैं, बेशक शहर के बाहर इसको चलाया जाए। हालांकि प्रशासक की ओर से कहा गया कि मेट्रो की उपयोगिता को लेकर गठित कमेटी इसका अध्ययन कर रही है, जिसकी रिपोर्ट पर अमल होगा। वैसे, यह अच्छी बात है कि प्रशासक कटारिया ने शहर की योजनाओं को लेकर सक्रियता दिखाई है और उनकी अध्यक्षता में हुई सलाहकार परिषद की बैठक भी बेशक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची, लेकिन अगर इस प्रकार बैठकें हों तो संभव है, कुछ समाधान जरूर यहां की समस्याओं का निकल सकता है।

इस समय चंडीगढ़ में तमाम ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जोकि फाइलों में भी दर्ज हैं। चंडीगढ़ के मास्टर प्लान 2031 का मामला हो या फिर ट्रिब्यून चौक-जीरकपुर फ्लाईओवर के निर्माण का केस, अभी इन पर कुछ भी नहीं हुआ है। हाउसिंग स्कीम, लीज होल्ड टू फ्री होल्ड, सीएचबी के मकानों की वन टाइम सेटलमेंट आदि अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जिनका समाधान होना आवश्यक है। प्रशासक कटारिया राजनीति और प्रशासन का व्यापक अनुभव रखते हैं। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे शहर की तमाम जरूरतों का आकलन करके उन्हें पूरा करवाने का काम करेंगे। चंडीगढ़ को उसके मूल स्वरूप में रखते हुए यहां जीवन के संपूर्ण विकास के प्रयास करने होंगे। यहां सभी वर्गों को साथ लेकर उनके भविष्य को प्रगति की राह पर ले जाना होगा। चंडीगढ़ का विकास देश को नई राह दिखाता है, यह मॉडल शहर है। ऐसे में प्रशासक सलाहकार परिषद की बैठक की गंभीरता को समझा जाना चाहिए। समय के साथ चंडीगढ़ की जरूरतें बढ़ रही हैं और यह शहर फैल रहा है। परिषद की बैठक में उठने वाले मुद्दों का ठोस समाधान जरूरी है और इसके लिए सभी पक्षों को निर्णायक कार्यप्रणाली के साथ आगे बढ़ना होगा। 

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